Sunday, 20 January 2013

आँखों में समंदर

आँखों में समंदर


आज तक है  दिल  कुछ  उदास उदास
जाने क्या ढूढूता है ये मेरा दिल
सब कुछ तो यही है मेरे पास
जाने किसकी  है इसे तलाश

वो  वीरान राहे वो  सूनी सी डगर
खोयी नहीं अभी तक आँखों का वो मंजर
वो बेख़ौफ़ मेरा चलना वो पीठ का खंजर
जो तुमने दिया है मुझे तोहफाये उल्फत
जिंदगी की उदासी और आँखों में समंदर

तुम तो मेरे अपने थे सौपा था तुम्हे सब कुछ
जानते थे मुझे और मेरे हालातो को तुम तो न थे अनबुझ
कैसे कैसे गिर के सम्हला था और सम्हाला था खुद को
जो गिरा दिया यू ही अनजाने में वो मस्स्कत से भरा था बूंद बूंद

खैर  कोई शिकायत अब तुमसे क्या ?
जो मिला है अब मेरा है
अब यही मेरा रहे हमसफ़र होगा गरौं से क्या ?


आज़ और कल


आज़ और कल
जब हम छोटे थे तो समझाते न थे लोगो की चालो को
समझते ना थे उनके दोतरफ़ा व्यक्तित्व को उनके इरादों को
तो हम प्यारे थे सबके प्यारे अच्छे थे और सच्चे
क्योंकी हमें समझ ना थी की समझ सके उनकी समझ को
और समझ सके उनके प्यार करने की वजह को

अब जब हम समझदार हो गए है समझ जाते है हर बात
कई बार तो जो नहीं समझना चाहिए उसे भी
तो बिखर जाता है हमारे आस पास का ढोंगा व्यक्तित्व
उनके दो तरफ़ा रंगों का समायोजन और उसका अस्तित्व

खुल जाती है गुत्थियो से उलझी हुई रस्शिया
तो हम प्यारे न रह गए ना अच्छे ना सच्चे
क्योकि इन आँखों ने सिख ली है पहचान
अपने और पराये की दूरिया और घराए की
जान चुकी है जो दिखता है जरुरी नहीं की हकीकत हो
लुभावने फूल जिनसे बरबस मन खिचा जो रहा हो ना हो एक  मुसीबत हो


इन आँखों ने इस भोले मन ने सीख ली है पहचान
 अब छलना न होगा आसान
हाँ अब  ये संभव है उनको भी न पड़ जाये समझ की मार जो है पाक इन्सान

अति भली न थी चाहे नासमझी की हो या समझदारी की
पर हमने तो यही सिखा है जब भी करेंगे अति ही होगी

PRADEEP K. DUBEY