Tuesday, 11 January 2022

समंदर




आज समंदर से मिला 

बड़ा बेचैन था वो

कुछ कहना चाहता हो जैसे 

कुछ खो दिया हो जैसे 

कुछ पाना चाहता हो जैसे 

कोई छोड़ गया हो जैसे 

कहीं जाना चाहता हो जैसे 

जैसे कुछ सदमे जो भुला नहीं पा रहा हो 

कोई दूर चला गया हो जैसे  

जिसे बुला नहीं पा रहा हो जैसे 

पर जाने क्यू 

ये बेचैनी कुछ जानी पहचानी सी थी 

मै देखता रह गया, सोचता रह गया

कुछ सुलझा नहीं पा रहा था मैं । 


प्रदीप रघुवंशी 

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