आज समंदर से मिला
बड़ा बेचैन था वो
कुछ कहना चाहता हो जैसे
कुछ खो दिया हो जैसे
कुछ पाना चाहता हो जैसे
कोई छोड़ गया हो जैसे
कहीं जाना चाहता हो जैसे
जैसे कुछ सदमे जो भुला नहीं पा रहा हो
कोई दूर चला गया हो जैसे
जिसे बुला नहीं पा रहा हो जैसे
पर जाने क्यू
ये बेचैनी कुछ जानी पहचानी सी थी
मै देखता रह गया, सोचता रह गया
कुछ सुलझा नहीं पा रहा था मैं ।
प्रदीप रघुवंशी
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