Monday, 23 August 2021

“आसान है क्षमा मांग लेना”

 


बहोत ही आसान होता है विनम्रता से क्षमा मांग लेना

बस एक झीना सा पर्दा होता है अभिमान का

और वो भी अभिमान किसका “पता नहीं”

उसे हटाना है और कहना है “मै क्षमा प्रार्थी हूँ अपनी सभी गलतियों के लिए

मेरा इरादा ऐसा नहीं था”

बस देखा ! बहोत ही आसान होता है किसी से क्षमा मांग लेना

क्या फर्क पड़ता है कौन दोषी है किसकी कितनी गलती है ?

कौन कितना सच्चा कितना झूठा है ?

सब बिना अर्थ की बातें है ना कुछ हासिल होना है ना ही कुछ खोना है

जबकि क्षमा आपको सिर्फ देती है

कभी विनम्रता का अनमोल गुण, कभी मीठे संबंध, कभी बड़े होने का भाव, कभी संबंधों की संवेदनशीलता,

और बाद में आपके साथी को अपनी गलती का एहसास

सबको पता चलता है की कौन कितना गलत है और कितना सही

बस नकारात्मक शक्तियों का प्रभुत्व कुछ ज्यादा होता है उस वक्त में

सिर्फ वो वक्त टालना है

सो क्षमा मांगों और आगे बढ़ो,

 

                                                                                Writer

प्रदीप कुमार दुबे 


Sunday, 8 August 2021

नागवार वक्त

 नागवार वक्त 


नागवार था वो वक्त,  फिर भी गुजर ही गया 

तल्खियाँ  ही थी हर शै में , मै जिधर भी गया 

कही जहमत ना बन जाए मेरा सामना उससे  

यही सोच के रास्ते में मै ठहर ही गया

कैसे कैसे सम्हाली, हमने आबरू अपनी 

कही मांग ना बैठू कुछ दिले आरज़ू अपनी 

यही सोच के हर  शख्स मुझसे डर ही गया 

नागवार था वो वक्त,  फिर भी गुजर ही गया


बुरे वक्त की भी, अजब एक कहानी है 

हर कोई सितमशियार है न कोई राजा है न रानी है 

हमको मालूम ना था,  सच की हकीकत और झूठ की कसौटी क्या है ?

जलाल का पुलिंदा भर था मैं 

अच्छा हुआ तंग आकार खुद से,  मैं मर ही गया  

नागवार था वो वक्त,  फिर भी गुजर ही गया


                                                                                                          Pradeep K. Dubey



बेटियाँ

 बेटियाँ


इनके हाथों मे आसमान दे दो

फिर भी  पैर से जमीं इनके छूटती नहीं

कैसी सख्त जान है ये बेटियाँ अपने कुटुंब की

जोड़ती है हमेशा, हर रिश्तों को, पर खुद कभी टूटती नहीं

पापा का दूसरा प्यार होती है 

मैया की दुनिया तो मानो, सदाबहार होती है

सोचता हूँ बेटियाँ न होती तो दुनिया कैसी होती ?

जैसे सारे रंग ही छिन लिए जाएं रंगोली से

जैसे जुदा कर दिया जाए हमे,  अपने हमजोली से

सबका ख्याल रखना तो इन्हे,  जैसे बचपन से आता है

ममता, प्यार, स्नेह से तो जैसे इनका जन्मों से नाता है

रौनक होती है ये सारे जहान की

इनके होने भर से खुशियां घरों से, कभी रूठती नहीं

सच इनके हाथों मे आसमान दे दो

तो भी पैरों से जमीं इनके छूटती नहीं

                                                          प्रदीप कुमार दुबे