नागवार वक्त
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
तल्खियाँ ही थी हर शै में , मै जिधर भी गया
कही जहमत ना बन जाए मेरा सामना उससे
यही सोच के रास्ते में मै ठहर ही गया
कैसे कैसे सम्हाली, हमने आबरू अपनी
कही मांग ना बैठू कुछ दिले आरज़ू अपनी
यही सोच के हर शख्स मुझसे डर ही गया
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
बुरे वक्त की भी, अजब एक कहानी है
हर कोई सितमशियार है न कोई राजा है न रानी है
हमको मालूम ना था, सच की हकीकत और झूठ की कसौटी क्या है ?
जलाल का पुलिंदा भर था मैं
अच्छा हुआ तंग आकार खुद से, मैं मर ही गया
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
Pradeep K. Dubey
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