बेटियाँ
इनके हाथों मे आसमान दे
दो
फिर भी
पैर से जमीं इनके छूटती नहीं
कैसी सख्त जान है ये बेटियाँ अपने कुटुंब की
जोड़ती है हमेशा, हर रिश्तों को, पर खुद कभी टूटती नहीं
पापा का दूसरा प्यार होती है
मैया की दुनिया तो मानो, सदाबहार होती है
सोचता हूँ बेटियाँ न होती तो दुनिया कैसी होती ?
जैसे सारे रंग ही छिन लिए जाएं रंगोली से
जैसे जुदा कर दिया जाए हमे, अपने हमजोली से
सबका ख्याल रखना तो इन्हे, जैसे बचपन से आता है
ममता, प्यार, स्नेह से तो जैसे इनका जन्मों से नाता है
रौनक होती है ये सारे जहान की
इनके होने भर से खुशियां घरों से, कभी रूठती नहीं
सच इनके हाथों मे आसमान दे दो
तो भी पैरों से जमीं इनके छूटती नहीं
प्रदीप कुमार दुबे
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