बहोत ही आसान होता है विनम्रता से क्षमा मांग लेना
बस एक झीना सा पर्दा होता है अभिमान का
और वो भी अभिमान किसका “पता नहीं”
उसे हटाना है और कहना है “मै क्षमा प्रार्थी
हूँ अपनी सभी गलतियों के लिए
मेरा इरादा ऐसा नहीं था”
बस देखा ! बहोत ही आसान होता है किसी से
क्षमा मांग लेना
क्या फर्क पड़ता है कौन दोषी है किसकी कितनी
गलती है ?
कौन कितना सच्चा कितना झूठा है ?
सब बिना अर्थ की बातें है ना कुछ हासिल होना
है ना ही कुछ खोना है
जबकि क्षमा आपको सिर्फ देती है
कभी विनम्रता का अनमोल गुण, कभी मीठे संबंध,
कभी बड़े होने का भाव, कभी संबंधों की संवेदनशीलता,
और बाद में आपके साथी को अपनी गलती का एहसास
सबको पता चलता है की कौन कितना गलत है और
कितना सही
बस नकारात्मक शक्तियों का प्रभुत्व कुछ
ज्यादा होता है उस वक्त में
सिर्फ वो वक्त टालना है
सो क्षमा मांगों और आगे बढ़ो,
Writer
प्रदीप कुमार दुबे
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