अन्दर के शैतान
मैंने महसूस
किया है अपने अन्दर के शैतान को
क्या अपने किया है?
जो बुराइयो पर खिलखिलाता है और दमित हो जाता है सद्कर्मो से
जो झाकता है इन आँखों से मैल के परदे चढ़ाकर
जो छल करता है बेबशो से मासूम सा चेहरा बनाकर
मैंने महसूस
किया है अपने अन्दर के शैतान को
क्या अपने किया है?
मैंने देखा है उसके आते ही कैसे गलत और सही का भेद मिट जाता है
कैसे वो एक इन्सान से धीरे धीरे हैवान में बदल जाता है
कैसे वो सब कर जाता है जिसकी कभी उम्मीद भी नहीं होती
और कैसे मेरे अन्दर की अच्छाईया रोती रहती सिसकती रहती
मैंने देखा है और
कई मर्तबा अफ़सोस भी किया है कि मै ऐसा कैसे कर सकता हूँ
कैसे मुझे रुचिकर हो जाता है जो मै खुद करना पसंद नहीं करता हूँ
मैंने देखा है दीन के आंशुओ का उसपर कोइ फर्क नहीं पड़ता
वो बर्बर होकर लड़ने लगता जब कोई उसे सीधा दिखता
मैंने देखी है उसके अन्दर क्रूरता, पशुता, निर्ममता
मै नफरत करता हु उससे, मै जीतना चाहता हु उसे, और दमित करना भी
क्योकि वो दबा देता है मेरे सद्चरित्र को
दूषित कर देता है मेरे स्वछन्द मन को और मेरे अस्तित्व को
मै परिमार्जित होना चाहता हु,सौम्य , सुवासित , सुगंधमय
ताकि मेरे अपने गर्व कर सके मुझपर
ताकि एक दीप जला सकूँ
अपने अंतर्मन में निरंतर
मै प्रायसरत हूँ क्या आप भी है
PRADEEP K.DUBEY
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