भ्रम जीवन का
कभी-कभी लगता है
कुछ भी गलत या कुछ भी सही नही होता है।
सब कपटी मनुष्यों के बनाये गये जाल हैं।
जो अपने स्वार्थ निमित्त गढ़े गये है
जो अपनी सुलभता के लिये रचे गये है
जब कुछ हॉसिल ही नही तो कैसा पाना
जब कुछ पाया ही नही तो कोई क्या यहॉ खोता है
ये धर्म-अधर्म, सच-झुठ प्रभु प्रदत्त नही
सब अपनी सुलभता के लिए रचे गये है
खुशियॉ कोई अर्थ नही रखती
मनुष्य अनायाश यहॉ रोता है।
सदीयों पहले कुछ लोगो ने राहें बनाई थी
चले आ रहे हम सब लकीर पिटते उसपर
परिवर्तन के डर से ऑखें भीचें, हाथो को बॉधा है कसकर
हम व्यभीचारी बातों के धनी
हम चोर, बस न्यायप्रिय लगते है
और के लिए हम नितीबद्ध
अपनी बारी में ठगते है।
जिन्दा है हममे दानव केवल
इंसान कही सोता है।
कभी-कभी लगता है
कुछ भी गलत या कुछ भी सही नही होता है।
खुशियॉ कोई अर्थ नही रखती
मनुष्य अनायाश यहॉ रोता है।
Pradeep Dubey
No comments:
Post a Comment