Tuesday, 7 December 2021
अभी भी सीख रहा हुं मै
Saturday, 27 November 2021
खामोशी
Monday, 23 August 2021
“आसान है क्षमा मांग लेना”
बहोत ही आसान होता है विनम्रता से क्षमा मांग लेना
बस एक झीना सा पर्दा होता है अभिमान का
और वो भी अभिमान किसका “पता नहीं”
उसे हटाना है और कहना है “मै क्षमा प्रार्थी
हूँ अपनी सभी गलतियों के लिए
मेरा इरादा ऐसा नहीं था”
बस देखा ! बहोत ही आसान होता है किसी से
क्षमा मांग लेना
क्या फर्क पड़ता है कौन दोषी है किसकी कितनी
गलती है ?
कौन कितना सच्चा कितना झूठा है ?
सब बिना अर्थ की बातें है ना कुछ हासिल होना
है ना ही कुछ खोना है
जबकि क्षमा आपको सिर्फ देती है
कभी विनम्रता का अनमोल गुण, कभी मीठे संबंध,
कभी बड़े होने का भाव, कभी संबंधों की संवेदनशीलता,
और बाद में आपके साथी को अपनी गलती का एहसास
सबको पता चलता है की कौन कितना गलत है और
कितना सही
बस नकारात्मक शक्तियों का प्रभुत्व कुछ
ज्यादा होता है उस वक्त में
सिर्फ वो वक्त टालना है
सो क्षमा मांगों और आगे बढ़ो,
Writer
प्रदीप कुमार दुबे
Sunday, 8 August 2021
नागवार वक्त
नागवार वक्त
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
तल्खियाँ ही थी हर शै में , मै जिधर भी गया
कही जहमत ना बन जाए मेरा सामना उससे
यही सोच के रास्ते में मै ठहर ही गया
कैसे कैसे सम्हाली, हमने आबरू अपनी
कही मांग ना बैठू कुछ दिले आरज़ू अपनी
यही सोच के हर शख्स मुझसे डर ही गया
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
बुरे वक्त की भी, अजब एक कहानी है
हर कोई सितमशियार है न कोई राजा है न रानी है
हमको मालूम ना था, सच की हकीकत और झूठ की कसौटी क्या है ?
जलाल का पुलिंदा भर था मैं
अच्छा हुआ तंग आकार खुद से, मैं मर ही गया
नागवार था वो वक्त, फिर भी गुजर ही गया
Pradeep K. Dubey
बेटियाँ
बेटियाँ
इनके हाथों मे आसमान दे
दो
फिर भी
पैर से जमीं इनके छूटती नहीं
कैसी सख्त जान है ये बेटियाँ अपने कुटुंब की
जोड़ती है हमेशा, हर रिश्तों को, पर खुद कभी टूटती नहीं
पापा का दूसरा प्यार होती है
मैया की दुनिया तो मानो, सदाबहार होती है
सोचता हूँ बेटियाँ न होती तो दुनिया कैसी होती ?
जैसे सारे रंग ही छिन लिए जाएं रंगोली से
जैसे जुदा कर दिया जाए हमे, अपने हमजोली से
सबका ख्याल रखना तो इन्हे, जैसे बचपन से आता है
ममता, प्यार, स्नेह से तो जैसे इनका जन्मों से नाता है
रौनक होती है ये सारे जहान की
इनके होने भर से खुशियां घरों से, कभी रूठती नहीं
सच इनके हाथों मे आसमान दे दो
तो भी पैरों से जमीं इनके छूटती नहीं
प्रदीप कुमार दुबे
Friday, 30 July 2021
मुंशी प्रेमचंद (एक सच्चे शिल्पकार) "Munshi Premchand (ek sachche shilpkar)"
एक कथाकार ही नहीं थे
एक अच्छे शिल्पकार थे वो
अपनी रचनाओ में सच्चाई की मिट्टी मिलाते,
दुख-सुख का लेप लगा कुछ ऐसा दिखाते
जो कड़वा सच था समाज का
जो आंतरिक रूप था दराज का
कुछ ऐसे ढंग के कलाकार थे वो
आसान नहीं होता, सबके बीच रहकर
अपने वजूद को मरने ना देना
सब डूबे पड़े हो, पर खुद को अलग करके
सबके जैसा बनने ना देना
एक पैनी नजर के धनी
एक उम्दा अदाकार थे वो
विरोध उस वक्त व्यक्त किया
जब कोई आवाज नहीं उठाता था
जो लिखता लीक से हटकर
उसके कोई साथ नहीं आता था
अपने में सँजोये हुए एक पूरा संसार थे वो
एक कथाकार ही नहीं थे
एक अच्छे शिल्पकार थे वो
"कुछ कहना है" "Kuchh Kahana Hai "
तुम हर बार मुझसे कहते हो
"कुछ कहना है"
पर वो क्यू नहीं कहते ?
जो कहना है
सारी बातें हो जाती है, पूरी मुलाकातें हो जाती हैं
फिर कुछ बचा कैसे रह जाता है ?
जो कहना है
सब सुनता तो हूँ,
कुछ छूट कैसे जाता है ?
सब कह के भी मुझसे,
तू रूठ कैसे जाता है ?
और फिर कहते हो मुझसे
"कुछ कहना है"
आई का दुख-सुख, भाई की कहानी
मोहल्ले की खबर, सखियों की जुबानी
कॉलेज का आना-जाना, गलियों का वो ताना-बाना
सब कुछ तो कह डाला है तुमने
अब कह भी दो
"जो कहना है"
Saturday, 6 February 2021
दुनियाँ मे अपने माई के बड़ाई नाही बा
दुनियाँ मे अपने माई के बड़ाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
बबुआ भईने बीमार माई भूखेली तिववहार
माई बरत मातींन जग में दवाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
दुनियाँ मे अपने माई के बड़ाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
जाड़ा गर्मी बरसात माई दिहलू तू साथ
माई अचारा मतींन जग में राजाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
दुनियाँ मे अपने माई के बड़ाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
माई गईलू एक दिन बाउ कईने दूसर शादी
मयभा माई मतींन जग में कसाई नाहीं बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा
दुनियाँ मे अपने माई के बड़ाई नाही बा
जे अभागा बाटे ओकरे घरवाँ माई नाही बा......