Wednesday, 28 August 2019

मूलयवान

गैरो को तो छोडो खुद से तो ईमानदार रहो
बेईमान होना आसान है पर पर खुद से तो ऐसा न करो
सामर्थ्य है, तो सहयोगी बनो
असमर्थता पर भी चुप न रहो
कीमत यहाँ  तुम्हारी है ,और तुम्हारे  अस्तित्व की है
कुछ अच्छा करो और अपनी नज़र में मूलयवान बनो
हमने ये जीवन यूँ ही तो पाया नहीं
अभी है बहोत वक्त सबकुछ तो गवांया नहीं.


हिसाब


सामज अपने पतन के निकृष्ट स्तर पर पहुंच गया है
अब तो प्रलय भी आ जाये तो कोई शिकायत नहीं
गेहू के संग घूं सी हो गयी है हालत अपनी
इन बेईमानों के संग अब खुद पर भी ऐतबार नहीं
जबसे होश सम्हाला है कीचड़ से है वास्ता अपना
बेदाग जीना भी कोई चीज है हमने जाना ही नहीं
पर भेद नहीं मिटता अच्छे और बुरे का
हमारे गलत रास्तो के  चुने जाने पर
कँही  खाते चल रहे है सबके कारनामो के
हिसाब तो होगा ....और वो भी निष्पक्छ निर्भेद और  निर्विवादित l

धुप

जब जिंदगी अपनी धुप से नवाजती है
तो  रंग चाहे  कोई भी हो ढलाव  तो आ ही जाता है l
जब  किस्मत  दीवारों  की  तरह  खड़ी हो  जाती है राहों में
तो जज्बे और जुनूँ से आप कितना भी चले ठहराव तो आ ही जाता है
सब कुछ करना ही नहीं होता है यहाँ
कुछ और भी है इसके सिवा, अनसुलझा सा बस फर्क है की वो नहीं दिखता है 



स्मृतियां बूढ़े मन की

अब जब तनहा होता हु कोई गीत गुनगुनाता हु

  उन गीतों में ही  सही एक मीत पाता हु

  कुछ साज रखे है कुछ तराने रखे है 

 एक दरख़्त  है मेरा उसमे कुछ खत पुराने रखे है 

  ड्योढ़ी के निचे कुछ पुरानी यादो के बण्डल  है साथी  मेरे 

 शाम ढलते ही उनके साथ एक चाय होती है 

 चंद टूटे खाव्बो के खिलौने अलमारी पे बिखरे  है 


 कुछ अधूरे सपनो की तस्वीरें  दीवारो से  लटके है 

 गुस्ताखियाँ आज भी आँगन के झूले पे बैठ के  मेरा  खिल्ली उड़ाती है

  सच कसक उठता है मन जब उन पलो की याद आती है

  सच बिलख उठता है मन जब उन पलो की याद आती है

सच इश्वर की श्रेष्ठतम कृति है हम



ईश्वर  की एक श्रेष्ठत्तम कृति है हम
जी चाहे जितना तोल लो इसे धर्म  के तराजू पर,

पर सार्थकता तो सिद्ध हमारी ही होगी ।  
रख  लो  एक पलड़े पर हमारी  निर्दयता, निरंकुशता, अपराध में संलिप्तता

 
अगर फिर भी कम पड़े तो माँ बाप के लिए हमारी उपेक्षाएं, तिरस्कार और जोड़ लेना
प्रकृत को हमने ही तो लूटा है ।           

उधेड़ डाले है उसके सारे बुने हुए तानो-बानो को
ये बात अलग है की क्षीण हुई है उससे हमारी जीवन शक्ति
पर तो क्या ?                                     

 और किसमें है इतना सामर्थ्य     

 ये श्रेष्ठता नहीं तो और क्या है ।  

और अगर फिर भी तुम्हारा धर्म का पलड़ा भारी है तो
तौलो हमारी हैवानियत   
हम अपनी ताकत आजमाने के लिए अपने ही भाईयों को खा जाते है
अपने ही पिता का लहू हमारा सर्वोत्तम पेय है
माँ बहन की इज्जत,अस्मत की धज्जिया बिखेर देते है
हम सरे बाजार
और इसके बावजूद अगर किसी बहन में बच जाती है इतनी ताकत की वो आवाज उठा सके
तो काट के उसकी गर्दन छीन लेते है
उससे उसके जीवन का अधिकार भी
अब मुझे नहीं लगता तुम्हारे पलड़े पर धर्म का अब भी कही अस्तित्व होगा
सच ईश्वर  की श्रेष्ठतम कृति है हम 

 हमारी श्रेश्ठता का कोई शानी नहीं l

अब तो आ जाओ प्रभु

आ जाओ अब तो प्रभु सही वक्त भी आ गया है धरा पर
एक रावण मिटा दिया था जिन्दा वैसे सहस्त्र रावण अब भी है धरा पर                


सोचता हुँ वो आज के रावणो से सौ गुना भला था
देखी थी उसने तब भी सीता की मर्जी चाहे भले जग को छला था
सीता हरण के पीछे उसका स्वनिमित्त नही उसकी बहन का प्रतिशोध भी खड़ा था
आज का रावण तो स्व-आनंद के लिए ऐसा कर गुजरता  है
स्व के बारे सोचता है
प्रतिरोध और पर-इच्छा से उसका नहीं  कोई वास्ता है
रामनवमी अब यहाँ हम हर वर्ष मानते है
रावण को पूजते है हाँ पर कुछ पुतले जलाते है
अब तो आ जाओ प्रभु
क्या अभी कुछ इससे भी बुरा होगा
अपनों को अपने और हाथ को हाथ नही सूझता क्या अब इससे ज्यादा भी अँधेरा होगा
अब तो आ जाओ प्रभु..........

सीखा है मैंने किसी से

मन को स्वच्छंद गति से बहने देना 

सीखा है मैंने किसी से  

प्रतिकूल परिश्थितियों में थिर रह जाना 

सीखा है मैंने किसी से  

हसना रोना दोनों ही मूल दशा है प्राकृत की  

कब हसना है  कब रोना है

 सीखा है मैंने किसी से 

 कुशाग्र नहीं था कभी भी मैं दुनिया और दुनियादारी में

  पर रिस्तो में अपने प्यार पिरोना

 सीखा है मैंने किसी से 

 जीवन एक कठिन डगर है राहें इसकी आसान नही

  गुन गुन गाना चलते जाना

 सीखा है मैंने किसी से  

जब आया था इस जग में  जब  बोध नही था कुछ का भी 


 ऊँगली पकड़ के आगे बढ़ना सीखा है मैंने किसी से

स्वतंत्रता के दायरे

अगर स्वतंत्रता है कुछ भी खाने की तो चलो खाते है किसी का जीवन ,       
अरे हमारे दायरे बड़े है,हमारा अधिकार बड़ा है, आखिर मनुष्य है हम l
शैक्षिकता बढ़ी है हमारी, बढ़ा है धन फिर खाने के अधिकार का कैसा हनन,
कल मछली बकरी भैस गाय खाया अब अपनी ही औलाद खाएंगे हम
अरे हमारे दायरे बड़े है,हमारा अधिकार बड़ा है, आखिर मनुष्य है हम l
सार्थकता तो हो परमात्मा की श्रेष्ठत्तम कृति होने का हमपर 
गर्व करना ही होगा उन्हें की मेरा बेटा खा जाता है उन सबको जिनसे मिलता है उसको जीवन 
पहले धरा वृक्ष गौ फिर चैनो अमन,
अरे हमारे दायरे बड़े है,हमारा अधिकार बड़ा है, आखिर मनुष्य है हम l
अरे खाओ खाओ इस लालसा को इतना बढ़ाओ की एक शाम अपनी ही औलाद  कढ़ाई और चूल्हो पर हो
उसकी आंत उसका कलेजा उसके अंगुलियों का जी भर के करे सेवन
अरे हमारे दायरे बड़े है,हमारा अधिकार बड़ा है, आखिर मनुष्य है हम l

YESTERDAY AND TODAY


जब हम छोटे थे तो समझाते न थे लोगो की चालो को
समझते ना थे उनके दोतरफ़ा व्यक्तित्व को उनके इरादों को
तो हम प्यारे थे सबके प्यारे,अच्छे थे और सच्चे,
क्योंकी हमें समझ ना थी की समझ सके उनकी समझ को
और समझ सके उनके प्यार करने की वजह को

अब जब हम समझदार हो गए है, समझ जाते है हर बात
कई बार तो जो नहीं समझना चाहिए उसे भी
तो बिखर जाता है हमारे आस पास का ढोंगा व्यक्तित्व
उनके दो तरफ़ा रंगों का समायोजन और उसका अस्तित्व

खुल जाती है गुत्थियो से उलझी हुई रस्शिया
तो हम प्यारे न रह गए ना अच्छे ना सच्चे
क्योकि इन आँखों ने सिख ली है पहचान
अपने और पराये की,
दूरिया और घराए की,
जान चुकी है जो दिखता है जरुरी नहीं की हकीकत हो
लुभावने फूल जिनसे बरबस मन खिचा जो रहा हो ना हो एक  मुसीबत हो

इन आँखों ने इस भोले मन ने सीख ली है पहचान अब छलना न होगा आसान
हाँ अब  ये संभव है उनको भी न पड़ जाये समझ की मार जो है पाक इन्सान

अति भली न थी चाहे नासमझी की हो या समझदारी की
पर हमने तो यही सिखा है जब भी करेंगे अति ही होगी

उत्तरदायित्व

मानता हू बेईमानी ने आपनी जडे गहरी खोद रक्खी है l
पर मुशकिल तो आयेगी अब उसे अपना विस्तार करने मे l
मानता हू झूठ बहोत संजीदा  है आजकल अपने छवि को लेकर,
पर मुशकिले तो आयेंगी अब उसे अपना कारोबार करने मे
मानता हू उन्नति की सफर आसान नहीं होता,
पर सुगमता कुछ तो हासिल होगी उसे अपना व्यापार करने मे l
एक अच्छा नेतृत्व ही अच्छा भविष्य होता है
एक बडी जीत, एक बडा ओहदे  का मतलब बहोत बडा उत्तरदायित्व होता है l
ये समझना होगा हमको,उनको,सबको
क्योकी हमारे सीधेपन को लोग मूर्खता मानते है और उसमे ही उनका लाभ निहित होता है l

Sunday, 4 August 2019

COMMON MISTAKE IN THE USE OF TENSES.......


Common mistake in the use of continuous tenses
·         WRONG: It is raining for three days.
·         RIGHT: It has been raining for three days.
·         WRONG: My mom is sleeping for two hours now.
·         RIGHT: My mom has been sleeping for two hours now.

In these statements we are using the present continuous instead of the present perfect continuous. We use the present perfect continuous tense to tell about an action which started in the past, and form that time it is still continuing.

Common mistake in the use of present perfect tenses
·         WRONG: I have given him yesterday.
·         RIGHT: I gave him yesterday.
·         WRONG: He has returned from America last week.
·         RIGHT: He returned from America last week.


In these statements we are using the present perfect tense instead of the simple past tense. The present perfect is a present tense. It can not be utilize with adverbs of past tense.
Common mistake in the use of future tense
·         WRONG: See that you will not do any damage.
·         RIGHT: See that you do not do any damage.


 In this statement, it is mistake to use the future tense in the subordinate clause when the verb is in the main clause and in the imperative mood.
Common mistake in the use of future tense

·         WRONG:  I will send  him when the dinner will be ready.
·         RIGHT: I will send  him when the dinner is ready.
·         WRONG: He will drink if you will ask him.
·         RIGHT: He will drink if you ask him

RIGHT:  We will meet with you as soon as you come.
WRONG: We will meet with you  as soon as you'll come.


  1.  In this statement, When the verb is main clause and  is in the future tense, the verb in the subordinate clause should be in the present and not in the future.