ईश्वर की एक श्रेष्ठत्तम कृति है हम
जी चाहे जितना तोल लो इसे धर्म के तराजू पर,
पर सार्थकता तो सिद्ध हमारी ही होगी ।
रख लो एक पलड़े पर हमारी निर्दयता, निरंकुशता, अपराध में संलिप्तता
अगर फिर भी कम पड़े तो माँ बाप के लिए हमारी उपेक्षाएं, तिरस्कार और जोड़ लेना
प्रकृत को हमने ही तो लूटा है ।
उधेड़ डाले है उसके सारे बुने हुए तानो-बानो को
ये बात अलग है की क्षीण हुई है उससे हमारी जीवन शक्ति
पर तो क्या ?
और किसमें है इतना सामर्थ्य
ये श्रेष्ठता नहीं तो और क्या है ।
और अगर फिर भी तुम्हारा धर्म का पलड़ा भारी है तो
तौलो हमारी हैवानियत
हम अपनी ताकत आजमाने के लिए अपने ही भाईयों को खा जाते है
अपने ही पिता का लहू हमारा सर्वोत्तम पेय है
माँ बहन की इज्जत,अस्मत की धज्जिया बिखेर देते है
हम सरे बाजार
और इसके बावजूद अगर किसी बहन में बच जाती है इतनी ताकत की वो आवाज उठा सके
तो काट के उसकी गर्दन छीन लेते है
उससे उसके जीवन का अधिकार भी
अब मुझे नहीं लगता तुम्हारे पलड़े पर धर्म का अब भी कही अस्तित्व होगा
सच ईश्वर की श्रेष्ठतम कृति है हम
हमारी श्रेश्ठता का कोई शानी नहीं l
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