Wednesday, 28 August 2019

स्मृतियां बूढ़े मन की

अब जब तनहा होता हु कोई गीत गुनगुनाता हु

  उन गीतों में ही  सही एक मीत पाता हु

  कुछ साज रखे है कुछ तराने रखे है 

 एक दरख़्त  है मेरा उसमे कुछ खत पुराने रखे है 

  ड्योढ़ी के निचे कुछ पुरानी यादो के बण्डल  है साथी  मेरे 

 शाम ढलते ही उनके साथ एक चाय होती है 

 चंद टूटे खाव्बो के खिलौने अलमारी पे बिखरे  है 


 कुछ अधूरे सपनो की तस्वीरें  दीवारो से  लटके है 

 गुस्ताखियाँ आज भी आँगन के झूले पे बैठ के  मेरा  खिल्ली उड़ाती है

  सच कसक उठता है मन जब उन पलो की याद आती है

  सच बिलख उठता है मन जब उन पलो की याद आती है

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