अब जब तनहा होता हु कोई गीत गुनगुनाता हु
उन गीतों में ही सही एक मीत पाता हु
कुछ साज रखे है कुछ तराने रखे है
एक दरख़्त है मेरा उसमे कुछ खत पुराने रखे है
ड्योढ़ी के निचे कुछ पुरानी यादो के बण्डल है साथी मेरे
शाम ढलते ही उनके साथ एक चाय होती है
चंद टूटे खाव्बो के खिलौने अलमारी पे बिखरे है
कुछ अधूरे सपनो की तस्वीरें दीवारो से लटके है
गुस्ताखियाँ आज भी आँगन के झूले पे बैठ के मेरा खिल्ली उड़ाती है
सच कसक उठता है मन जब उन पलो की याद आती है
सच बिलख उठता है मन जब उन पलो की याद आती है
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