आ जाओ अब तो प्रभु सही वक्त भी आ गया है धरा पर
एक रावण मिटा दिया था जिन्दा वैसे सहस्त्र रावण अब भी है धरा पर
सोचता हुँ वो आज के रावणो से सौ गुना भला था
देखी थी उसने तब भी सीता की मर्जी चाहे भले जग को छला था
सीता हरण के पीछे उसका स्वनिमित्त नही उसकी बहन का प्रतिशोध भी खड़ा था
आज का रावण तो स्व-आनंद के लिए ऐसा कर गुजरता है
स्व के बारे सोचता है
प्रतिरोध और पर-इच्छा से उसका नहीं कोई वास्ता है
रामनवमी अब यहाँ हम हर वर्ष मानते है
रावण को पूजते है हाँ पर कुछ पुतले जलाते है
अब तो आ जाओ प्रभु
क्या अभी कुछ इससे भी बुरा होगा
अपनों को अपने और हाथ को हाथ नही सूझता क्या अब इससे ज्यादा भी अँधेरा होगा
अब तो आ जाओ प्रभु..........
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