सामज अपने पतन के निकृष्ट स्तर पर पहुंच गया है
अब तो प्रलय भी आ जाये तो कोई शिकायत नहीं
गेहू के संग घूं सी हो गयी है हालत अपनी
इन बेईमानों के संग अब खुद पर भी ऐतबार नहीं
जबसे होश सम्हाला है कीचड़ से है वास्ता अपना
बेदाग जीना भी कोई चीज है हमने जाना ही नहीं
पर भेद नहीं मिटता अच्छे और बुरे का
हमारे गलत रास्तो के चुने जाने पर
कँही खाते चल रहे है सबके कारनामो के
हिसाब तो होगा ....और वो भी निष्पक्छ निर्भेद और निर्विवादित l
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